शुद्धिक्रियाएं ( shat karm) Body purification
योग शब्द जितना छोटा दिखाई देता है, उतना ही विस्तार इसने अपने अंदर समेटे हुआ है। योग का अर्थ प्रकार उसके अंग वे उसमें शामिल क्रियाएं सभी मिलकर इस शब्द की सार्थकता सिद्ध करते हैं। प्राचीन समय से ही हमारे मनीषियों वह ऋषि यों ने अपने-अपने दर्पण से इसका प्रतिबिंब दुनिया को दिखाया है। सभी प्रतिबिंब एक जैसे नहीं थे। सभी में कुछ ना कुछ भिन्नता है किंतु उनका परम लक्ष्य एक ही है, ईश्वर की प्राप्ति। प्रतिबिंब की भिन्नता ने ही योग की अलग-अलग शाखाओं को जन्म दिया। शाखाएं भले ही अलग-अलग हैं पर उद्देश्य सभी का एक है, ईश्वर मैं एक ही कार हो जाना। अपने आत्मस्वरूप को शुद्ध आत्मस्वरूप अर्थात प्योर सौल में स्थापित कर लेना। इसके लिए कुछ क्रियाओं व अभ्यास ओं का वर्णन योग ग्रंथों में किया गया है। इन क्रियाओं का अभ्यास करते हुए साधक अपने लक्ष्य को साध सकता है। योग की कई शाखाएं हैं जैसे राजयोग, हठयोग , भक्ति योग, कर्म योग ज्ञान योग और क्रिया कुंडलिनी योग।
योग के मार्ग पर आगे बढ़ने का सर्व प्रथम पायदान होता है शुद्धि क्रियाएं। शुद्धि क्रियाएं वे क्रियाएं होती हैं जिनके माध्यम से साधक अपने शरीर की शुद्धि करता है। शुद्धि क्रियाओं के माध्यम से साधक के स्थूल शरीर का शुद्धिकरण होता है। इनके करने से शरीर के भीतर संचित मल या जो वेस्ट प्रोडक्ट हमारे शरीर से बाहर नहीं निकल पाता वह मल के रूप में हमारे शरीर में इकट्ठा होता रहता है, वह निष्कासित हो जाता है। हठयोग में यह शुद्धि क्रिया ए शर्ट कर्म के नाम से जानी जाती हैं। इन क्रियाओं की संख्या के कारण ही इन्हें सेट कर्म कहा जाता है यह निम्नलिखित है धोती, बस्ती, नेति, नौली, कपालभाति और त्राटक।
यह अलग अलग क्रियाए शरीर के अलग-अलग अंगों और संस्थानों को स्वच्छ करते हैं हम यह कह सकते हैं कि यह सभी कर्म हमारे शरीर की प्यूरी फिकेशन करते हैं। जैसे धोती हमारे उदर का( food pipe) शुद्धीकरण करती है। बस्ती से आंतों का शुद्धिकरण होता है। नेति से श्वास संस्थान(nasal passage)का शुद्धिकरण होता है। कपालभाति और नौली क्रिया जठराग्नि पर अपना प्रभाव डालती हैं। त्राटक के द्वारा हमारा अंतः स्रावी तंत्र(endocr ine system)मजबूत होता है।
इन शुद्धि क्रियाओं को विस्तार से समझने के लिए इनकी विधियों को समझना अति आवश्यक है।
- धोती- यह क्रिया हमारे पेट को स्वच्छ करने का कार्य करती है। यह तीन प्रकार की होती है- 1. वस्त्र धोती
- जल धोती
- वायु धोती
वस्त्र धौति-
वस्त्र धोती में एक वस्त्र का प्रयोग किया जाता है। यह वस्त्र चार अंगुल चौड़ा वह 15 हाथ लंबा महीन और स्वच्छ होना चाहिए। वस्त्र को गर्म जल में भिगोकर अच्छे से निचोड़ कर दांतो तले चबाने की क्रिया करते हुए निकलने की कोशिश की जाती है। शुरुआत में एक हाथ कपड़े को निकलने का अभ्यास करते हैं। कुछ समय पश्चात पूरी धोती को निगल लेने का अभ्यास किया जाता है। पूरा वस्त्र निकलने के पश्चात उसका शिरा दांतो के बीच में दबाकर नौली क्रिया करनी चाहिए बाद में दांतो के बीच दबा हुआ सिरा हाथ से पकड़ कर शीघ्रता से बाहर खींच लेना चाहिए।
- सावधानियां- 1. धोती को प्रतिदिन गर्म पानी से अच्छी तरह साफ कर लेना चाहिए।
- 2. प्रातः काल खाली पेट ही इस क्रिया को करना चाहिए। 3. बाहर निकालते समय यदि धोती भीतर फस जाए तो सावधानी के साथ थोड़ी धोती अंदर निगल कर दुबारा उसे बाहर खींचना चाहिए।
जल धोती- जल धोती को कुंजल क्रिया कहते हैं। इस विधि में 2:00 से 3 लीटर पानी को उत्कटासन में बैठकर बिना रुके पीते हैं। यदि ऐसा करने से भी उल्टी नहीं आती है तो नीम की एक तिनके से गले के भीतरी भाग की मांसपेशियों को स्पर्श करें ऐसा करने से उल्टी हो जाती है।
वायु धोती- इस क्रिया में नाक के दोनों छेद को बंद करके मुंह से सांस लेते हुए हवा को पेट में इकट्ठा किया जाता है उसके बाद udd yan bandh(upward abdominal lock)और नौली क्रिया करके गुदा द्वारा(rectum) उसे शरीर से निकाल दिया जाता है।
बस्ती-
बस्ती भी दो प्रकार की होती है- 1. पवन बस्ती 2. जल बस्ती
पवन बस्ती- क्रिया में नौली की सहायता से अपान वायु को ऊपर खींचा जाता है उसके बाद वायु व मल को निकालने के लिए मयूरासन किया जाता है।
जल वस्ती- इस क्रिया में गुदा मार्ग में एक बांस की पतली और पोली नली डालकर साफ पानी से भरे तब में बैठकर पानी को आंतों में चढ़ाना होता है और उसके बाद निकाल देते हैं जिससे कि आंखें साफ हो जाती हैं। वर्तमान समय में एनिमा जल बस्ती का ही एक प्रकार है।
नेति-नेति हमारे श्वसन संस्थान को साफ और स्वच्छ रखने का एक उत्तम माध्यम है। यह भी दो प्रकार से होती है- जलनेति और सूत्र नेती।
जल नेती- इस विधि में नेति पात्र के द्वारा नेति की जाती है। गुनगुने पानी में नमक मिलाकर पात्र को एक नाक से लगाकर दूसरे नाक के छेद से पानी को बाहर निकालते हैं फिर दूसरी नाक से भी यही क्रिया दोहराते हैं।
नौली क्रिया- इसमें पांव को एक या डेढ़ फुट के फासले पर रखते हैं और घुटनों को थोड़ा आगे झुका कर जांघों पर हाथ रखते हैं। फेफड़ों से वायु को बाहर निकाल कर उद्यानबंध लगाया जाता है उसके बाद दाएं और बाएं भाग को छोड़कर मध्य भाग को ढीला कर लेते हैं इसे मध्य नोली कहते हैं। इसी प्रकार दक्षिण नौली व बामनोली बी करनी चाहिए।
कपाल भाटी- इस क्रिया में पद्मासन या सुखासन में बैठ जाना चाहिए फिर आंखें बंद कर लेनी चाहिए पहले दाहिने नथुने से श्वास लें और बाएं से निकाल दे फिर बाय से ले और दाएं से निकाल दें इसके बाद सास को पेट के अंदर धक्का देते हुए बाहर निकालते रहें। पहले प्रिया को धीरे धीरे करें फिर तेजी से धाराएं।
त्राटक- त्राटक में किसी बिंदु या वस्तु को एकाग्र चित्त होकर देखा जाता है । त्राटक दो प्रकार से किया जाता है पहला है ज्योति नाटक और दूसरा है बिंदु त्राटक। ज्योति त्राटक में जलती हुई लो पर ध्यान केंद्रित किया जाता है और बिंदु त्राटक में किसी एक बिंदु पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
है ज्योति नाटक और दूसरा है बिंदु त्राटक। ज्योति त्राटक में जलती हुई लो पर ध्यान केंद्रित किया जाता है और बिंदु त्राटक में किसी एक बिंदु पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
सभी शुद्धि क्रियाएं व्यक्ति के लिए अत्यंत लाभदायक हैं किंतु इस की कुछ सीमाएं भी हैं निम्न परिस्थितियों में यह क्रियाएं नहीं करनी चाहिए-
सत्कर्म करते समय अवस्थाओं का ध्यान रखना जरूरी है जैसे बहुत बुजुर्ग लोगों को जिन्हें इनका अभ्यास नहीं है और बहुत छोटे बच्चों को यह क्रियाएं नहीं करवानी चाहिए
व्यक्ति जब मानसिक रूप से इन क्रियाओं को करने के लिए तैयार हो तभी यह क्रियाएं करवानी चाहिए।
व्यक्ति की क्षमता के अनुसार यह क्रियाएं करवानी चाहिए अर्थात यदि व्यक्ति अधिक दुर्बल है तो उसे शुद्धि क्रिया ए नहीं करवानी चाहिए।
शुद्धि क्रिया है अधिक या प्रतिदिन नहीं करनी चाहिए।
इन क्रियाओं को करने का उत्तम समय साप्ताहिक या पाक्षिक होता है या फिर जब ऋतु परिवर्तन हो या मौसम बदले तब यह क्रियाएं अवश्य ही करनी चाहिए।
सत्कर्म मानव शरीर को स्वच्छ और निरोगी करने के लिए सबसे अच्छा उपाय हैं। स्वच्छ व्यक्ति योग के पथ पर आगे बढ़ सकता है अतः हम सेट कर्मों को योग मार्ग का प्रथम पायदान भी कह सकते हैं।