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ब्रह्माण्ड शब्द शायद हम सभी ने कभी न कभी जरूर सुना होगा | पूरी पृथ्वी ,आकाश , अंतरिक्ष , वायु सब ब्रह्माण्ड का ही भाग है | इसी तरह सूर्य और चन्द्रमा भी ब्रह्माण्ड का ही हिस्सा है | सूर्य और चंद्र इस सृष्टि की ऊर्जा चक्र को बनाये रखते है |
हमारा शरीर भी इसी सृष्टि का एक छोटा सा हिस्सा है जो भी इस सृष्टि में है वो हमारे शरीर में भी है यह हमारे वैदिक ग्रंथो में लिखा हुआ हैं | हमारी नासिका का सीधा स्वर या दाया स्वर सूर्य को समर्पित है | दाए स्वर की सहयता से किये जाने के कारन ही इस प्राणायाम को सूर्यभेदी प्राणायाम कहते है |
सूर्य भेदी प्राणायाम की विधि - दो विधि से हम इसे कर सकते है |
पहली विधि में सुखासन या पद्मासन में बैठकर उल्टा हाथ घुटने पर रखे फिर सीधे हाथ की दो ऊँगली से बायीं नासिका को बंद करें अब सूर्य स्वर से यानि दायी नासिका से साँस अंदर ले और दायी से ही छोड़ दे | ऐसा आप शुरू में १० से १५ बार करे अभ्यास होने पर २० से २५ बार कर सकते है |
दूसरी विधि में सुखासन या पद्मासना में बैठ जाये, उल्टा हाथ घुटने पर रखे , सीधे हाथ की दो ऊँगली से बायीं नासिका को को बंद करे फिर दायी नासिका से साँस ले और बायीं से छोड़ दे |
सूर्यभेदी प्राणायाम के लाभ -
यह प्राणायाम शरीर को ऊर्जावान बनता है |
इस प्राणायाम को करने से कफ संतुलित रहता है |
यह प्राणायाम हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है |
सर्दी जुकाम में यह बहुत लाभकारी है |
ये प्राणायाम हमारे शरीर में ऑक्सीजन लेवल को बढ़ता है |
इस प्राणायाम को करने से डिप्रेशन काम होता है |
यह प्राणायाम तनाव को भी काम करता है |
जिन लोगो का बी.पी. लौ रहता है उन्हें भी ये प्राणायाम जरूर करना चाहिए |
बौद्धिक क्षमता को भी बढ़ता है |
सूर्य भेदी प्राणायाम की सीमाएं -
गर्मी के मौसम में ये प्राणायाम नहीं करना चाहिए |
जिन लोगो को बी.पी. हाई रहता है वो इस प्राणायाम को न करे |
जिन लोगो के शरीर में गर्मी बढ़ी हुई हो उन्हें भी यह नहीं करना चाहिए |